उत्तराखंडदेहरादून

*ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2023 में रूद्राक्ष एवं तिमूर के वृक्ष रहे आकर्षण का केन्द्र।*

*ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2023 में रूद्राक्ष एवं तिमूर के वृक्ष रहे आकर्षण का केन्द्र।*

 

देहरादून: दिनांक 11 दिसंबर 2023, सोमवार। दिनांक 07-12-2023 से दिनांक 11-12-2023 तक फारेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, देहरादून में चले पांच दिवसीय ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2023 में रूद्राक्ष एवं तिमूर के वृक्ष सभी के आकर्षण का केन्द्र रहे। जिसमें स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह एवं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा आयुष एवं वैलनेस के स्टाल को सराहा गया तथा उत्तराखंड में आयुष एवं वैलनेस को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया।

रूद्राक्ष वृक्ष के बारे में जानकारी देते हुए आयुष विभाग के आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी डॉ० डी० सी० पसबोला द्वारा बताया गया कि भगवान शिव से जुड़े होने के कारण रुद्राक्ष को बहुत ही पवित्र माना जाता है। रुद्राक्ष को धारण करने मात्र से ही जीवन से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसूओं से हुई थी।

रुद्राक्ष एक फल के सूखे बीज हैं। रुद्राक्ष के पेड़ को वनस्पति जगत में एलेओकार्पस गैनिट्रस रॉक्सब के नाम से संबोधित किया जाता है और इस पेड़ के फल के बीज रहस्यमयी रुद्राक्ष हैं।

माना जाता है कि रुद्राक्ष की माला एक बायो-जनरेटर है जो पहनने वाले के चक्र, ऊर्जा क्षेत्र, कुंडलिनी ऊर्जा और मस्तिष्क की नसों को संतुलित करती है। रुद्राक्ष माला पहनने वाले को उनकी ध्यान की स्थिति से जुड़ने और आंतरिक शांति प्राप्त करने में मदद करती है। यह कई पहनने वालों द्वारा अनुभव किया गया है, रुद्राक्ष जीवन में खुशी, शांति और समृद्धि लाता है और व्यक्ति को आध्यात्मिकता के मार्ग पर ले जाता है।

रुद्राक्ष की माला अपने उपचार गुणों और रहस्यमय शक्तियों के लिए जानी जाती है। मोतियों ने विभिन्न बीमारियों को ठीक करने और उपचारात्मक गुणों को साबित किया है, हालांकि इसे व्यापक रूप से स्वीकार नहीं किया गया है। मोती मनोवैज्ञानिक मुद्दों और भावनाओं और भय से संबंधित समस्याओं को हल करने के लिए जाने जाते हैं।

रुद्राक्ष में विद्युत चुम्बकीय शक्तियां होती हैं जो मन को प्रभावित करती हैं, व्यक्ति के दोषों (वात, पित्त और कफ) को नियंत्रित और संतुलित करती हैं जिससे स्वास्थ्य को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। औषधीय उपयोग के लिए, मालाओं को धातु कैपिंग के बिना बनाया जाता है। रुद्राक्ष का उपयोग पाउडर, अर्क या पेस्ट के रूप में किया जा सकता है, इसे दूध में उबाला जा सकता है, पहना जा सकता है या राख में बदला जा सकता है।

इसी प्रकार तिमूर वृक्ष के बारे में जानकारी देते हुए डॉ० पसबोला ने बताया कि उत्तराखंड के सभी जिलों में टिमरू अधिकांश मात्रा में पाया जाता है। इसकी प्रमुख रूप से पांच प्रजातियां उत्तराखंड में पाई जाती हैंए जिसका वानस्पतिक नाम जैन्थोजायलम एलेटम है।

तोमर के बीज के तेल का उपयोग प्राकृतिक सुगंध में किया जाता है और औषध इत्र, लकड़ी-पुष्प रचनाओं, धूप इत्र, कोलोन, वन नोट्स, उच्च श्रेणी के पुष्प आदि में बहुत प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग तंबाकू उद्योगों और अरोमाथेरेपी में भी किया जाता है। इसके बीज और छाल का उपयोग बुखार, हैजा और अपच के उपचार में सुगंधित टॉनिक के रूप में किया जाता है। फलों, शाखाओं और कांटों को वातनाशक और पेटनाशक कहा जाता है और अक्सर दांत दर्द से राहत के लिए उपयोग किया जाता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में, तोमर के बीजों का उपयोग मौखिक समस्याओं सहित कई स्वास्थ्य स्थितियों के इलाज के लिए किया जाता है और इस पेड़ को अक्सर दांत दर्द के पेड़ के रूप में जाना जाता है। आज की दुनिया में भी ये चलन में है. इसमें एंटीसेप्टिक और गंध से लड़ने की क्षमता होती है और कई टूथपेस्ट निर्माता इसे अपने टूथपेस्ट में एक घटक के रूप में उपयोग करते हैं।

दांतों के लिए यह काफी फायदेमंद है इसका प्रयोग दंत मंजन, दंत लोशन व बुखार की दवा के रूप में काम में लाया जाता है। इसका फल पेट के कीड़े मारने व हेयर लोशन के काम में भी लाया जाता है। कई दवाइयों में इसके पेड़ का प्रयोग किया जाता है। इसके मुलायम टहनियों को दातुन की तरह इस्तेमाल करने से चमक आती है।

यह मसूड़ों की बीमारी के लिए भी रामबाण का काम करता है। उत्तराखंड के गांव में आज भी कई लोग इसकी टहनियों से ही दंतमंजन करते हैं। टिमरू औषधीय गुणों से युक्त तो है ही, साथ ही इसका धार्मिक व घरेलू महत्व भी है। हिन्दुओं प्रसिद्ध धाम बदरीनाथ तथा केदारनाथ में प्रसाद के तौर पर चढ़ाया जाता है। यही नहीं गांव में लोंगो की बुरी नजर से बचने के लिए इसके तने को काटकर अपने घरों में भी रखते हैं। गांव में लोग इसके पत्ते को गेहूं के बर्तन में डालते हैं, क्योंकि इससे गेहूं में कीट नहीं लगते।

इसके बीज मुंह को तरोताजा रखने के अलावा पेट की बीमारियों के लिए भी फायदेमंद हैं। इसकी लकड़ी हाई ब्लड प्रेशर में बहुत कारगर है, इसकी कांटेदार लकड़ी को साफ करके हथेली में रखकर दबाया जाए तो ब्लड प्रेशर कम हो जाता है। तिमूर के बीज अपने बेहतरीन स्वाद और खुशबू की वजह से मसाले के तौर पर भी इस्तेमाल किये जाते हैं। हमारे यहां तिमूर से सिर्फ चटनी बनायी जाती है लेकिन यह चाइनीज, थाई और कोरियन व्यंजन में बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला मसाला है।

शेजवान पेप्पर चाइनीज पेप्पर के नाम से जाना जाने वाला यह मसाला चीन के शेजवान प्रान्त की विश्वविख्यात शेजवान डिशेज का जरूरी मसाला है। मिर्च की लाल काली प्रजातियों से अलग इसका स्वाद अलग ही स्वाद और गंध लिए होता है। इसका ख़ास तरह का खट्टा मिंट फ्लेवर जुबान को हलकी झनझनाहट के साथ अलग ही जायका देता है। चीन के अलावा, थाईलेंड, नेपाल, भूटान और तिब्बत में भी तिमूर का इस्तेमाल मसाले और दवा के रूप में किया जाता है।

इन देशों में कई व्यंजनों को शेजवान सॉस के साथ परोसा भी जाता है। तिमूर की लकड़ी का अध्यात्मिक महत्त्व भी है। इसकी लकड़ी को शुभ माना जाता है। जनेऊ के बाद बटुक जब भिक्षा मांगने जाता है तो उसके हाथ में तिमूर का डंडा दिया जाता है। तिमूर की लकड़ी को मंदिरों, देव थानों और धामों में प्रसाद के रूप में भी चढ़ाया जाता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button