देहरादून । उत्तराखंड में चीड़ पिरूल से ब्रिकेट्स बनाने के लिए 7 नई यूनिट स्थापित करने की तैयारी की जा रही है। इससे पहले प्रदेश में पांच यूनिट पहले ही काम कर रही है। दरअसल चीड़ पिरूल के बेहतर उपयोग और इसके चलते वनाग्नि की घटनाओं पर नियंत्रण के मकसद के साथ योजना को आगे बढ़ाया जा रहा है।
उत्तराखंड में चीड़ पिरूल के बेहतर उपयोग को बढ़ाने के लिए सरकार पिछले लंबे समय से इस पर विचार कर रही है। इसी के तहत राज्य में पिरूल का उपयोग बढ़ाने के लिए अलग-अलग विकल्प भी तलाशे जा रहे थे। खास बात यह है कि चीड़ पिरूल से ब्रिकेट्स बनाने पर काम शुरू किया गया है और आगे भी इसे और बड़े स्तर पर करने के लिए प्लान बनाया जा रहा है।
उत्तराखंड में अब 7 नई यूनिट्स स्थापित करने के प्रयास चल रहे हैं, जिसमें चीड़ पिरूल से ब्रिकेट्स बनाए जा सकेंगे। राज्य सरकार द्वारा यह नई यूनिट अल्मोड़ा, चंपावत, पौड़ी और नरेंद्र नगर में लगाया जाना प्रस्तावित है। सरकार ने इसके लिए सत्र 2025 से पहले काम पूरा करने का लक्ष्य भी रखा है।
उधर दूसरी तरफ राज्य में पहले ही पांच ब्रिकेट्स यूनिट चल रही है। इन यूनिटों को प्रोत्साहित करने के लिए यहां उत्पादन की मात्रा को बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। प्रदेश में साल 2024 वनाग्नि सत्र के दौरान चीड़ बाहुल्य क्षेत्र में स्वयं सहायता समूहों के जरिए 38 हजार 299 क्विंटल चीड़ पिरूल एकत्रित करवाया गया है। और इसके सापेक्ष 1 करोड़ 13 हजार 54 हजार की धनराशि का भुगतान भी किया गया है।
उत्तराखंड वन विभाग ने भारत सरकार को 5 वर्षीय कार्य योजना भी भेजी है। यह कार्य योजना 2024-25 से 2028-29 तक के लिए प्रस्ताव की गई है। इस कार्य योजना में जंगलों की आग से जुड़े प्लान और वनाग्नि प्रबंधन से जुड़ा खाका प्रस्ताव के रूप में भेजा गया है। एपीसीसीएफ वनाग्नि निशांत वर्मा कहते हैं कि ऐसी योजनाएं जंगलों में आग की घटनाओं पर प्रभावी नियंत्रण के लिए बेहद जरूरी है और प्रयास किया जा रहे हैं कि जंगलों से पिरूल को ज्यादा से ज्यादा एकत्रित करवाते हुए इन्हें फायर सीजन में आग की वजह न बनने दिया जाए।
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